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रविवार, सितंबर 20, 2015

घोर अमावस की रातों में

मेरी इस कविता को हिंदी सप्ताह समापन समारोह (2013) में प्रथम पुरस्कार मिला था | आप भी पढिये :-
घोर अमावस की रातों में, मैं दीवाली खोज रहा हूँ |
शहर पत्थरों का है लेकिन, मैं हरियाली खोज रहा हूँ ||
क्या जाने सूखे बादल में, कोई अमृत कण मिल जाये |
दिशा बदल दे जो जीवन की, ऐसा कोई क्षण मिल जाये ||
अमृत जिसमें भरकर पी लूँ, ऐसी प्याली खोज रहा हूँ
घोर अमावस की रातों में, मैं दीवाली खोज रहा हूँ
ऊँचे महल रहन वालों में, कुछ दिल वाले भी मिलते हैं |
भटकाने वाले रस्तों में, मंजिल वाले भी मिलते हैं ||
जाम लगी सड़कों पर मैं तो रस्ता खाली खोज रहा हूँ
घोर अमावस की रातों में मैं दीवाली खोज रहा हूँ
तेज हवा के झोंको में भी, कुछ पत्ते तो रह जाते हैं |
कठिनाई में कैसे जीना, ये संदेशा कह जाते हैं ||
आंधी तूफानों में मैं तो रुत मतवाली खोज रहा हूँ
घोर अमावस की रातों में मैं दीवाली खोज रहा हूँ
मुंदी मुंदी सोती आँखों में, मीठे कुछ सपने भी होंगे |
गैर नहीं हैं सब दुनिया में, ढूढों कुछ अपने भी होंगे ||
अपनों को पहचान सकूँ मैं, अब कंगाली खोज रहा हूँ
घोर अमावस की रातों में मैं दीवाली खोज रहा हूँ
चाहे बंजर धरती हो पर, कुछ अंकुर जीवन के होंगे |
लिपटे हों विषधर तो क्या है, पेड़ तो वो चन्दन के होंगे ||
महका दे जीवन की बगिया ऐसा माली खोज रहा हूँ
घोर अमावस की रातों में मैं दीवाली खोज रहा हूँ
                                              [©ckdixit]

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