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जन्मस्थान... शामली जिला शामली उत्तर प्रदेश, कर्मस्थान..... वर्तमान में लखनऊ

शनिवार, अगस्त 29, 2015

राजकपूर एक फिल्म बना रहे थे…..फिल्म में कहानी का एक मोड़ ऐसा था ...नायिका की शादी नायक से नहीं किसी और से हो रही है...नायिका भोली है वो नहीं जानती कि नायक उसे चाहता है...इस सिचुएशन के लिए राजकपूर चाहते थे कि एक गीत नायिका शादी के पहले दिन गा रही है ...यानि एक शादी गीत.
इस गीत के लिए पंडित नरेंद्र शर्मा ने राजकपूर को गीतकार संतोष आनंद का नाम सुझाया. राजकपूर ने संतोष आनंद के साथ मीटिंग की, उनको सिचुएशन बताई कि नायिका इस गीत में अपनी सखियों, अपनी माँ और नायक को संबोधित कर रही है.........कुल मिला कर तीन तरह के भाव गीत में चाहिए थे............यहाँ एक और रोचक बात जानने लायक है, राजकपूर जब युवा थे तो उनकी शादी की बात एक लड़की से चल रही थी, राज कपूर जब उसके घर गए तो उसने उनको अंगूठा दिखा कर चिढाया था (बचपने में).............ये बात राजकपूर की स्मृति में थी और इसे भी वो अपने इस गीत में इस्तेमाल करना चाहते थे,  उन्हें गीत में कुछ शब्द ऐसे चाहिए थे जो नायिका अंगूठा दिखाते हुए गा सके (फिल्म बाबी में डिम्पल का बेसन सने हाथों से दरवाजा खोलने वाला सीन भी राजकपूर के एक व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित था)
खैर सारी बात समझने के बाद संतोष आनंद ने विदा ली और इस पर दिमाग लगाने लगे....अचानक उन्होंने दिल्ली की फ्लाइट पकड़ी और अपने परिवार के पास आ गए.
रात्रि के भोजन के बाद उन्होंने अपनी छोटी सी बिटिया को गोद में लिटाया और साथ ही कागज पर कलम भी चलने लगी....
सुबह हुई उन्होंने फिल्म के संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल को फोन करके कहा कि मैं आ रहा हूँ, गीत तैयार है.
मुबई में सब लोग बैठे... संतोष आनंद जी ने गीत सुनाना शुरू किया.... जैसे ही उन्होंने अंगूठा हिलाते हुए गाया...‘के तेरा यहाँ कोई नहीं’....राजकपूर ने संतोष आनंद जी का हाथ चूम लिया. लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल
ने शानदार धुन तैयार की और लता जी ने गाकर इस गीत को अमर कर दिया.
दोस्तों आप समझ ही गए होंगे कि मैं बात कर रहा हूँ लता जी द्वारा गाये प्रेमरोग फिल्म के सुपरहिट गीत ...ये गलियां ये चौबारा की.....इसके तीन अंतरे अलग अलग संबोधन के साथ लिखे गए हैं.
आशा है आपको इस गीत के बनने की ये कहानी अच्छी लगी होगी और अब आप इस गीत को एक नए नजरिये के साथ सुनेंगे................अब तो फिल्म जगत में सिर्फ व्यवसायिकता हावी है समर्पण कहीं खो गया है.

(कई वर्ष पहले एक मैगजीन में पढ़े श्री राजकपूर के एक इंटरव्यू तथा हाल ही में श्री संतोष आनंद के एक न्यूज चैनल पर प्रसारित एक इंटरव्यू पर आधारित)