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जन्मस्थान... शामली जिला शामली उत्तर प्रदेश, कर्मस्थान..... वर्तमान में लखनऊ

शनिवार, दिसंबर 24, 2011

सिगरेट

एक आपबीती सुनिए.... हाल ही में लखनऊ से बाहर गया था, वहाँ एक साहब ने सिगरेट पेश करते हुए कहा कि पीजिए. मैंने कहा जी मैं सिगरेट नहीं पीता. बड़े आश्चर्य और स्टाइल से मुझसे सवाल किया गया आप सिगरेट क्यों नहीं पीते?? मैंने उन्हें उसी स्टाइल में जवाब दिया... 

सिगरेट की इतनी औकात नहीं है कि मेरे होठों से लग सके.

वो बस मेरा चेहरा देख रहे थे......

गुरुवार, दिसंबर 15, 2011

कलर सिंह

कलर सिंह ! क्या आपने ये नाम कभी सुना है? शायद नहीं सुना होगा. दरअसल एक सप्ताह पहले मैंने भी नहीं सुना था. पिछले सप्ताह रुड़की (उत्तराखंड) में कलर सिंह नाम के एक सज्जन से मेरी मुलाकात हुई. वो राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान में काम करते हैं. मैंने उनसे इस अनोखे नाम रखने के बारे में पूछा तो पहले तो आश्चर्य हुआ कि आज तक उनके सहकर्मियों ने उनसे ये बात नहीं पूछी थी, खैर कलर सिंह ने बताया कि जब वो तीन साल के थे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे और मरणासन्न हो गए थे. तब एक डाक्टर ने उनका इलाज करके उनकी जान बचाई थी. उन डाक्टर का नाम था डा. कालरा जिनके नाम पर घरवालों ने उनका नाम कलर सिंह रख दिया.
 ......
यही हैं जनाब कलर सिंह
(विवरण एवं चित्र कलर सिंह की सहमति से ब्लाग पर प्रकाशित किया गया है)

शुक्रवार, नवंबर 11, 2011

11-11-11


बात 12 फरवरी 2000 की है मैं उस समय मेरठ विश्वविद्यालय परिसर से M.Sc. कर रहा था मेरे बैच में 9 छात्र और 2 छात्राएं थे. उस दिन हम सब अपने ही एक साथी का जन्मदिन मनाने के लिए विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार के सामने चाचा रेस्टोरेंट में एकत्र हुए थे. सभी लोग बातचीत कर रहे थे कि एक मित्र अशोक ने कहा कि उसने अपने एक पुराने मित्र के साथ वादा कर रखा है कि चाहे कहीं भी रहे पर 11-11-11 को वो उस मित्र से प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन पर मिलेगा. उसकी बात सुन कर मैंने कहा कि हम सब बैचमेट भी ऐसे ही मिलने का तय कर लेते हैं. इस पर खूब चर्चा हुई, 2000 लीप वर्ष था तय हुआ हर 29 फरवरी को मिला जायेगा.
दुर्भाग्यवश उस दिन जिस मित्र का जन्मदिन मना रहे थे वो एक महीने बाद ही एक सड़क दुर्घटना में नहीं रहा.
वक्त बीता चार साल बाद 2004 में 29 फरवरी को 10 में से 9 बैचमेट मेरठ विश्वविद्यालय परिसर में एकत्र हुए, पूरानी यादें ताजा की.
फिर चार साल बाद 2008 में सब लोग और ज्यादा व्यस्त हो गए फिर भी 6 लोग इक्कठे हुए, हाँ इस बार जगह बदल गयी थी सब दिल्ली में मिले. तय हुआ कि 2012 में सब परिवार सहित इक्कठे होंगे.
आज 11-11-11 को ये सब याद आ गया क्यों कि इसी तारीख से बात शुरू हुई थी. आज अशोक से बात नहीं हो पाई पता नहीं वो आज उस मित्र से प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन पर मिला कि नहीं, बात होंगी तो आपसे जरूर बताऊंगा.


मैंने जो लिखा उसके बारे में मित्र अशोक के विचार जानने के लिए यहाँ चटका (Click) लगाएं


बुधवार, अक्तूबर 26, 2011

दीपावली

पिछली दो दीपावली माता पिता से दूर रहकर मनानी पड़ी थी . दरअसल पर्यावरण की देख रेख करने वालों का काम दीपावली को और बढ़ जाता है क्योंकि पटाखों से पर्यावरण प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है . इसीलिए छुट्टी नहीं मिलती थी. पर इस बार छुट्टी मिल गई और दीपावली घर पर मना रहा हूँ .
जिनके कारण छुट्टी मिल गई उन सभी लोगों का धन्यवाद,
त्यौहार का प्रकाश हर इंसान के मन को प्रकाशित करता रहे यही कामना है.  

शुक्रवार, सितंबर 16, 2011

लोग


आज कार्यालय में हिन्दी सप्ताह समापन समारोह के अन्तर्गत स्वरचित हिन्दी कविता पाठ प्रतियोगिता काआयोजन किया गया था। आयोजन में अतिथि थे श्री राकेश जेटली (हिंदी अधिकारी एन टी पी सी) तथा श्री विजय नारायण तिवारी (वरिष्ठ हिंदी अधिकारी नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति).

निर्णायक थे श्री रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी प्रलयंकर’ एवं श्री वाहिद अली 'वाहिद' और मेरी इस कविता को प्रथम पुरस्कार के लिये चुना गया

कविता प्रस्तुत है

बन गई दुनिया तमाशा और देखते हैं लोग

दूसरों का घर जला कर रोटी सेकतें हैं लोग

एक रोटी के लिए दिन भर कमाए कोई माँ
और दस दस रोटियां नाली में फेंकते हैं लोग

हर तरफ है भीड़ कितनी फिर भी तन्हाई में लोग
जी रहे हैं झूठ के सागर की गहराई में लोग
और जिन हवाओं से कभी खुशबु यहाँ थी फैलती
आंधियां ही पा रहे हैं ऐसी पुरवाई में लोग

चल रही है तेज दुनिया फिर भी क्यूँ ठहरे हैं लोग
मरता सच कितना भी चीखे सब तरफ बहरे हैं लोग
और सांप भी तो फन छुपाये देख कर जिनको यहाँ
आज के इस दौर में तो इस कदर जहरे हैं लोग

पास हैं हथियार कितने फिर भी घबराते हैं लोग
दोस्तों को दे के धोखा हँसते ही जाते हैं लोग
और हैं नहीं देखो सुरक्षित अब किसी की थालियाँ
छेद करते हैं उसी में जिसमें खुद खाते हैं लोग

हो गई दुनिया ये कैसी और हैं कैसे ये लोग
मैं भला कैसे ये समझूं किसके हैं जैसे ये लोग
और जिनके हाथों से चमन हर बार उजड़ा है यहाँ
बनके बैठे हैं वो माली सच में हैं ऐसे ये लोग   

रविवार, सितंबर 11, 2011

परेशानी


पिछले एक महीने में एयर टेल ने बड़ा परेशान किया पांच अगस्त को नेट कनेक्शन लखनऊ में ही दूसरे पते पर शिफ्ट करने का निवेदन किया था. बताया गया कि दस दिन और तीन सौ रुपये लगेंगे. मैंने दस दिन प्रतीक्षा की फिर लगभग रोज ही ग्राहक सेवा केंद्र से बात की जहाँ जवाब मिलता कि आज हो जायेगा. हद तो तब हो गई जब महान नेट सेवा प्रदाता एयर टेल ने मेल द्वारा शिफ्टिंग शुल्क जोड़ कर बिल भेज दिया (नए पते पर एक भी दिन सेवा दिए बिना).
एयर टेल के सभी उपलब्ध मेल पतों पर समस्या भेजी कहीं से कोई जवाब नहीं आया, अंततः पूरे छतीस दिन की परेशानी के बाद मैंने एयर टेल को नमस्कार कहते हुए दस सितम्बर से नए सेवा प्रदाता की सेवाएं लेना प्रारंभ कर दी हैं. उम्मीद है अब समस्या नहीं आयेगी.
इस सबके चलते एक महीना नेट की दुनिया से दूर रहा, वापसी करते हुए अच्छा लग रहा है.

मुंबई के बाद अब दिल्ली, फिर वही आतंक फिर वही नेताओं की बयानबाजी कि देश को धमाकों की आदत पड़ गई है.
पता नहीं देश को इनसे निजात कब मिलेगी आतंक से भी और ऐसे नेताओं से भी ?

मंगलवार, जुलाई 19, 2011

दर्द

मुंबई के जख्म पर मरहम लगाये कौन अब
दौर ये कब तक चलेगा ये बताये कौन अब
कह रहे हैं चल पड़ी रफ़्तार से फिर जिंदगी
जिसने अपनों को है खोया मुस्कुराये कौन अब

बेकसूरों के लहू से ये जमीं क्यूँ लाल है
आदमी ही आदमी का क्यूँ बना अब काल है
हो गए बहरे शिखर पर बैठने वाले सभी
दर्द की आवाज ये दिल की सुनाये कौन अब

मुंबई पीडितों को विनम्र श्रद्धांजलि

रविवार, मई 15, 2011

जीवन की खोज

अमेरिका ने 86 ग्रहों पर जीवन की तलाश करने के लिए पांच करोड डालर की एक परियोजना शुरू की है. आज ही यह समाचार पढ़ा. 
कैसी विडम्बना है कि एक ओर अन्य ग्रहों पर जीवन की तलाश करने में मानव इतना परिश्रम कर रहा है वहीँ दूसरी ओर पर्यावरण को बिगाड़ कर इस धरती से जीवन नष्ट करने में लगा है.
वाह री मानव बुद्धि. 

रविवार, अप्रैल 03, 2011

कप

पोंटिग ने बीवी से चाय मांगी, बीवी ने प्लेट में चाय दे दी, पोंटिग ने कहा अरे प्लेट से कैसे चाय पियूँगा कप तो ला दो. बीवी ने कहा कप तो धोनी ले गया अब प्लेट में चाय पीने की आदत डाल लो
(हिंदुस्तान समाचार पत्र से साभार)

फिर रचा इतिहास

२ अप्रैल २०११,
मुंबई का वानखेडे स्टेडियम,
विश्वकप भारत का,
चारों और लहराते तिरंगे, और भला क्या चाहिए
२८ वर्ष का इंतजार आखिरकार २ अप्रैल को समाप्त हुआ. मैच से पहले कई बातें मन में थी १९९६ का वो सेमीफाइनल, २००३ का फ़ाइनल. लेकिन सब आशंकाएं निर्मूल सिद्ध हुई और हम जीत गए. धोनी वाकई किस्मत के धनी हैं.
जीत के बाद का जश्न देख रहा हूँ. क्या और कुछ है जो आम और खास को एक कर दे, उधर देश की राजनीति की सबसे ताकतवर कही जाने वाली महिला दिल्ली की  सड़कों पर जीत का जश्न मना रही हैं तो इधर मेरे घर के बाहर कपड़ों पर प्रेस करने वाली महिला धोनी जिंदाबाद के नारे लगा रही है. शिखर से जमीन तक सब एक रंग में डूबे हैं. नेता, अभिनेता से लेकर आम आदमी सब अपने हिन्दुस्तानी होने के अहसास के साथ झूम रहे हैं, अब इस खेल की आलोचना करने वाले कुछ भी कहें, कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे भारत को विश्व विजय का अहसास करा सबको नाचने का मौका देने वाले खिलाडियों को मेरा सलाम.
चलते चलते अमिताभ जी को ट्विटर पर पढ़ रहा हूँ वो लिखते हैं अनहोनी को होनी कर दे होनी को अनहोनी एक जगह जब जमा हो तीनों रजनी (कांत) गजनी (आमिर) और धोनी  
जय हिंद

बुधवार, मार्च 09, 2011

आंसू

हमें देख कर उनकी आँखों से कुछ आंसू टपक पड़े

हम ये समझे के शायद गम रहा जुदाई का


पर


वो आंसू नहीं हम थे
और निगाहों से गिर रहे थे

दीक्षित

शनिवार, जनवरी 01, 2011

नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ मेरा एक नया गीत

माना के मुश्किल हैं टेढ़े भी हैं
सीधे ये जीवन के रस्ते नहीं
पर जिन्दगी रूठ जाती है उनसे
जो रोते ही रहते हैं हंसते नहीं

दुख का ये बादल भी छंट जायेगा
ये एक लम्हा है कट जायेगा
आंसू की माला पिरोना ना तुम
मोती हैं ये इनको खोना ना तुम

आंसू ये तेरे अनमोल है महंगे बडे. हैं ये सस्ते नहीं
हां जिन्दगी रूठ जाती है उनसे जो रोते ही रहते हैं हंसते नहीं


ना भूलना मुस्कुराना कभी
इक दौर अच्छा है आना अभी
रूकना नहीं इस पल में तुझे
खुशियां मिलेंगी कल में तुझे

ये पल तो केवल ठहराव है मंजिल नहीं इसमें बसते नहीं
हां जिन्दगी रूठ जाती है उनसे जो रोते ही रहते हैं हंसते नहीं


माना के ऐसा भी हो जाता है
दिल ये अकेले में रो जाता है
इक कारवां पर तेरे साथ है
सर पे मौहब्बत भरे हाथ हैं

दम दोस्ती का अगर संग हो फिर यूं सुखों को तरसते नहीं
हां जिन्दगी रूठ जाती है उनसे जो रोते ही रहते हैं हंसते नहीं


दीक्षित