रूठती मनती हुई सी ज़िन्दगी
मुठ्ठियों से रेत सी छनती हुई सी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी से पूछता हूं ज़िन्दगी तू कौन है
ज़िन्दगी ही कह रही है ज़िन्दगी तो मौन है
ये कभी पत्थर कभी है रूई सी ज़िन्दगी
दोस्तों बेशर्म है छुइ मुई सी ज़िन्दगी
है कभी पतझड़ कभी है बाग सी ये ज़िन्दगी
बर्फ का टुकड़ा है यारों आग सी ये ज़िन्दगी
इक सवेरा है कभी है रात सी ये ज़िन्दगी
मौन रहते हैं जो उनकी बात सी ये ज़िन्दगी
है कभी कांटा कभी है फ़ूल सी ये ज़िन्दगी
याद करता हूं तो लगती भूल सी ये ज़िन्दगी
ये कभी आंधी कभी पुरवाई सी ये ज़िन्दगी
भीड़ इतनी है लगे तन्हाई सी ये ज़िन्दगी
ये कभी मंजिल कभी इक रास्ता है ज़िन्दगी
भूली बिसरी याद रहती दास्तां है ज़िन्दगी
दीक्षित
मेरे बारे में
- चन्द्रकांत दीक्षित
- India
- जन्मस्थान... शामली जिला शामली उत्तर प्रदेश, कर्मस्थान..... वर्तमान में लखनऊ
रविवार, अगस्त 22, 2010
रविवार, अगस्त 15, 2010
शनिवार, अगस्त 14, 2010
कैद में हूँ
कैद में हूं पर निकलना चाहता हूं
एक पर्वत हूं पिघलना चाहता हूं
लड़खड़ाता चल रहा था आज तक मैं
रास्तों पर अब संभलना चाहता हूं
लक्ष्य है जिस ओर मुड़ना चाहता हूं
अपनी मंजिल से मैं जुड़ना चाहता हूं
हौसलों के पंख उग आये हैं अब
आसमानों में मैं उड़ना चाहता हूं
दुख के सागर से मैं हटना चाहता हूं
सुख की बस्ती में मैं बसना चाहता हूं
सिसकियां अब बात कल की हो रही हैं
जोर से यारों मैं हंसना चाहता हूं
ख्वाब हैं जो सच बनाना चाहता हूं
अपनी ताकत मैं बताना चाहता हूं
मौन थी जो आज तक दिल में मेरे
एक धुन वो गुनगुनाना चाहता हूं
दीक्षित
एक पर्वत हूं पिघलना चाहता हूं
लड़खड़ाता चल रहा था आज तक मैं
रास्तों पर अब संभलना चाहता हूं
लक्ष्य है जिस ओर मुड़ना चाहता हूं
अपनी मंजिल से मैं जुड़ना चाहता हूं
हौसलों के पंख उग आये हैं अब
आसमानों में मैं उड़ना चाहता हूं
दुख के सागर से मैं हटना चाहता हूं
सुख की बस्ती में मैं बसना चाहता हूं
सिसकियां अब बात कल की हो रही हैं
जोर से यारों मैं हंसना चाहता हूं
ख्वाब हैं जो सच बनाना चाहता हूं
अपनी ताकत मैं बताना चाहता हूं
मौन थी जो आज तक दिल में मेरे
एक धुन वो गुनगुनाना चाहता हूं
दीक्षित
गुरुवार, अगस्त 05, 2010
यूं ही
अपने गम पीता रह गया
मैं तनहा रीता रह गया
दुनिया तो कल में चली गई
मैं कल में जीता रह गया
यादों की उस परछाई में
उस बगिया उस अमराई में
जो साथ गुज़ारा था हमने
उस पल में जीता रह गया
में कल में जीता रह गया
मैं तनहा रीता रह गया
दुनिया तो कल में चली गई
मैं कल में जीता रह गया
यादों की उस परछाई में
उस बगिया उस अमराई में
जो साथ गुज़ारा था हमने
उस पल में जीता रह गया
में कल में जीता रह गया
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