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सोमवार, सितंबर 20, 2010

जाने कहां गया वो मौसम

आज कार्यालय में हिन्दी सप्ताह समापन समारोह के अन्तर्गत स्वरचित हिन्दी कविता पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। आयोजन में राजभाषा अधिकारी श्री राज बहादुर सिंह मुख्य अतिथि तथा कवि श्री मुकुल महान श्री श्यामल मजुमदार निर्णायक थे और मेरी इस कविता को प्रथम पुरस्कार के लिये चुना गया
कविता प्रस्तुत है

जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी
चहक चहक चिड़िया आंगन में मीठे गीत सुनाती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी

कड़वा है अब मीठा पानी जो अमृत कहलाता था
सूना है वो घाट जहां पर हर राही रूक जाता था
बिन मैली नदियां इठलाती जब सागर तक जाती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी

जहर घुला है अब वायु में हुई बहारें गुम देखो
आधी हो गई सासें सबकी खूब तमाशा तुम देखो
एक समय था यही हवाएं खुशबु सी बिखराती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी

धुआं उगलती चिमनी हैं और पेड़ बेचारे मरते हैं
बेघर पंछी याद आज भी उस मौसम को करते हैं
जब हंसती थी हर डाल पेड़ की हर पत्ती इतराती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी

दौड़ तरक्की की अंधी है इसमें बस पछतावा है
गगन चूमती मीनारें तो केवल एक छलावा है
आज नहीं आती पहले तो बात समझ ये आती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी

वक्त अभी भी है जगने का मानव आखें खोल जरा
ममता की मूरत है धरती फिर से मां तो बोल जरा
भूल गया मानव ये धरती माता भी कहलाती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी

 दीक्षित

4 टिप्‍पणियां:

  1. धुआं उगलती चिमनी हैं और पेड़ बिचारे मरते हैं
    बेघर पंछी याद आज भी उस मौसम को करते हैं
    जब हंसती थी हर डाल पेड़ की हर पत्ती इतराती थी
    जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी

    वक्त अभी भी है जगने का मानव आखें खोल जरा
    ममता की मूरत है धरती फिर से मां तो बोल जरा
    भूल गया मानव ये धरती माता भी कहलाती थी
    जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी

    बहुत अच्छी पंक्तियां हैं लेकिन बिचारे नहीं होता-बेचारे होता है

    http://veenakesur.blogspot.com/

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  2. वीना जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद गलती सुधार दी है

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  3. आपकी कविता अच्छी है.

    उत्पत्ति के आधार पर शब्द के निम्नलिखित चार भेद हैं-

    1. तत्सम- जो शब्द संस्कृत भाषा से हिन्दी में बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं वे तत्सम कहलाते हैं।
    2. तद्भव- जो शब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं।
    3. देशज- जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं।
    4. विदेशी या विदेशज- विदेशी जातियों के संपर्क से उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। ऐसे शब्द विदेशी अथवा विदेशज कहलाते हैं।

    मेरे ख़याल से देशज शब्द भाषा को सौन्दर्य प्रदान करते हैं. यह शब्द आपको जनमानस तक ले जाते हैं. भाषा आसान होनी चाहिए, दुरूह नहीं. और अपने लेख या कविता को स्वछंद रहने दें, मलय या समीर की तरह.

    अगर आप बिचारे के साथ अपनी कविता में comfortable फील करतीं है तो बिचारे ही लिखे और कविता के अंत में नीचे नोट लिख दें.

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  4. बहुत सुंदर रचना - मनोज जी ने भी बहुत अच्छी और सही बात कही -
    वीना जी अपनी जगह सही हैं लेकिन "बिना बिचारे जो करे ...."
    इसमें भी किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए

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