आज कार्यालय में हिन्दी सप्ताह समापन समारोह के अन्तर्गत स्वरचित हिन्दी कविता पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। आयोजन में राजभाषा अधिकारी श्री राज बहादुर सिंह मुख्य अतिथि तथा कवि श्री मुकुल महान व श्री श्यामल मजुमदार निर्णायक थे और मेरी इस कविता को प्रथम पुरस्कार के लिये चुना गया ।
कविता प्रस्तुत है
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी
चहक चहक चिड़िया आंगन में मीठे गीत सुनाती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी
कड़वा है अब मीठा पानी जो अमृत कहलाता था
सूना है वो घाट जहां पर हर राही रूक जाता था
बिन मैली नदियां इठलाती जब सागर तक जाती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी
जहर घुला है अब वायु में हुई बहारें गुम देखो
आधी हो गई सासें सबकी खूब तमाशा तुम देखो
एक समय था यही हवाएं खुशबु सी बिखराती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी
धुआं उगलती चिमनी हैं और पेड़ बेचारे मरते हैं
बेघर पंछी याद आज भी उस मौसम को करते हैं
जब हंसती थी हर डाल पेड़ की हर पत्ती इतराती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी
दौड़ तरक्की की अंधी है इसमें बस पछतावा है
गगन चूमती मीनारें तो केवल एक छलावा है
आज नहीं आती पहले तो बात समझ ये आती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी
वक्त अभी भी है जगने का मानव आखें खोल जरा
ममता की मूरत है धरती फिर से मां तो बोल जरा
भूल गया मानव ये धरती माता भी कहलाती थी
जाने कहां गया वो मौसम जब धरती मुस्काती थी
दीक्षित