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रविवार, नवंबर 21, 2010

यादों के बहाने से

 बदलाव
बात पुरानी है मेरे बचपन की तब गांव में रहते थे टेलीविजन नहीं था केवल रेडियो था तब विविध भारती पर एक गीत बहुत लोकप्रिय था ये गोटेदार लहंगा......... इसी गीत की एक पंक्ति थी चुनरी बन जाये तेरी मेरे रूमाल से जिसे सुनकर मेरी बाल बुद्घि बड़ा आश्चर्य करती थी भला छोटे से रूमाल से चुनरी कैसे बन सकती है।
आज समझ आता है कि गीतकार ने दरअसल वक्त से कहीं आगे का गीत लिखा था। आज की पीढ़ी इस गीत को सुनकर बिलकुल आश्चर्य नहीं करेगी क्यों कि आज की तथाकथित रोलमाडल कन्याओं की चुनरी तो क्या पूरी वेशभूषा एक रूमाल से बन सकती है।
यादों के बहाने से आज इतना ही
आपके विचारों का स्वागत है।