रूठती मनती हुई सी ज़िन्दगी
मुठ्ठियों से रेत सी छनती हुई सी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी से पूछता हूं ज़िन्दगी तू कौन है
ज़िन्दगी ही कह रही है ज़िन्दगी तो मौन है
ये कभी पत्थर कभी है रूई सी ज़िन्दगी
दोस्तों बेशर्म है छुइ मुई सी ज़िन्दगी
है कभी पतझड़ कभी है बाग सी ये ज़िन्दगी
बर्फ का टुकड़ा है यारों आग सी ये ज़िन्दगी
इक सवेरा है कभी है रात सी ये ज़िन्दगी
मौन रहते हैं जो उनकी बात सी ये ज़िन्दगी
है कभी कांटा कभी है फ़ूल सी ये ज़िन्दगी
याद करता हूं तो लगती भूल सी ये ज़िन्दगी
ये कभी आंधी कभी पुरवाई सी ये ज़िन्दगी
भीड़ इतनी है लगे तन्हाई सी ये ज़िन्दगी
ये कभी मंजिल कभी इक रास्ता है ज़िन्दगी
भूली बिसरी याद रहती दास्तां है ज़िन्दगी
दीक्षित
wonderful dixit ji :) n mujhe aaj hi pata laga aapke blog ka nd nw jab bhi aap kuch naya add kare thn link bhej dijeyega....
जवाब देंहटाएंvery nice
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