कैद में हूं पर निकलना चाहता हूं
एक पर्वत हूं पिघलना चाहता हूं
लड़खड़ाता चल रहा था आज तक मैं
रास्तों पर अब संभलना चाहता हूं
लक्ष्य है जिस ओर मुड़ना चाहता हूं
अपनी मंजिल से मैं जुड़ना चाहता हूं
हौसलों के पंख उग आये हैं अब
आसमानों में मैं उड़ना चाहता हूं
दुख के सागर से मैं हटना चाहता हूं
सुख की बस्ती में मैं बसना चाहता हूं
सिसकियां अब बात कल की हो रही हैं
जोर से यारों मैं हंसना चाहता हूं
ख्वाब हैं जो सच बनाना चाहता हूं
अपनी ताकत मैं बताना चाहता हूं
मौन थी जो आज तक दिल में मेरे
एक धुन वो गुनगुनाना चाहता हूं
दीक्षित
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