एक वर्ष पूर्व अर्थात 1 सितं 2009 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली में हिन्दी मास के अंतर्गत स्वरचित हिन्दी गीत कविता पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। मैं उस समय वहां अनुसंधान एसोसिएट के रूप में कार्यरत था । मैने वहां अपने एक गीत का पाठ या कहुं तो गायन किया था क्यों कि मैने इसकी धुन बनाकर तरन्नुम में सुनाया था। धुन कैसी है इस पर चर्चा नहीं करूंगा क्यों कि आत्म प्रशंसा उचित नहीं होती। खैर प्रतियोगिता में वरिष्ठ हिन्दी सेवी डा सरोजिनी प्रीतम तथा श्री मनीषी निर्णायक थे और मेरे इस गीत को प्रथम पुरस्कार के लिये चुना गया था ।
गीत प्रस्तुत है
आज का ये दौर जाने कैसा दौर है
समझे जिसको अपना निकले कोई और है
आदमी ही आदमी से देखो डर रहा
एक दूसरे के हाथों आज मर रहा
आदमी ने आदमी की चाल छोड दी
भेडियों ने आदमी की खाल ओढ ली
चारों ओर आदमी हैं पर ये शोर है
समझे जिसको अपना निकले कोई और है
जिन्दगी में किसपे एतबार हम करें
किससे रूठ जायें किससे प्यार हम करें
रो रहे हैं और आंसू पी रहे हैं सब
अपने अपने वास्ते ही जी रहे हैं सब
रात काली लम्बी और दूर भोर है
समझे जिसको अपना निकले कोई और है
तैरता रहूं मै चाहे डूब जायें सब
ऐसी सोच आदमी की हो गई है अब
खो गई इन्सानियत इन्सान रह गये
घर तो ढह गये हैं बस मकान रह गये
इतना झूठ है न कोई ओर छोर है
समझे जिसको अपना निकले कोई और है
जाने कब तलक ये दौर यूं रूलायेगा
अच्छा दौर एक दिन जरूर आयेगा
कर लो सब दुआ के चला जाये दौर ये
बीते रात काली और आ जाये भोर रे
पर अभी तो सपनों में ही ऐसा दौर है
समझे जिसको अपना निकले कोई और है
really gud one.love it
जवाब देंहटाएंआज के दौर के इंसान और इंसानियत को दर्शाती बहुत सुंदर रचना - जो पुरुष्कार आपको मिला यह रचना उसकी पूरी हकदार थी - हार्दिक बधाई तरह शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई तथा शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
यकीनन गाने में भी अच्छा है आपका गीत
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़ कर
हार्दिक बधाई तथा शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंतैरता रहूं मै चाहे डूब जायें सब
जवाब देंहटाएंऐसी सोच आदमी की हो गई है अब
खो गई इन्सानियत इन्सान रह गये
घर तो ढह गये हैं बस मकान रह गये
सच है..बहुत सुंदर लिखा है...शुभ कामनाएं