आज कार्यालय में हिन्दी सप्ताह समापन समारोह के अन्तर्गत स्वरचित हिन्दी कविता पाठ प्रतियोगिता काआयोजन किया गया था। आयोजन में अतिथि थे श्री राकेश जेटली (हिंदी अधिकारी
एन टी पी सी) तथा श्री विजय नारायण तिवारी (वरिष्ठ हिंदी अधिकारी नगर राजभाषा
कार्यान्वयन समिति).
निर्णायक थे श्री रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी ’प्रलयंकर’ एवं श्री वाहिद अली 'वाहिद' और मेरी इस कविता को प्रथम पुरस्कार के लिये चुना गया
कविता प्रस्तुत है
बन गई
दुनिया तमाशा और देखते हैं लोग
दूसरों
का घर जला कर रोटी सेकतें हैं लोग
एक
रोटी के लिए दिन भर कमाए कोई माँ
और दस
दस रोटियां नाली में फेंकते हैं लोग
हर तरफ
है भीड़ कितनी फिर भी तन्हाई में लोग
जी रहे
हैं झूठ के सागर की गहराई में लोग
और जिन
हवाओं से कभी खुशबु यहाँ थी फैलती
आंधियां
ही पा रहे हैं ऐसी पुरवाई में लोग
चल रही
है तेज दुनिया फिर भी क्यूँ ठहरे हैं लोग
मरता
सच कितना भी चीखे सब तरफ बहरे हैं लोग
और
सांप भी तो फन छुपाये देख कर जिनको यहाँ
आज के
इस दौर में तो इस कदर जहरे हैं लोग
पास
हैं हथियार कितने फिर भी घबराते हैं लोग
दोस्तों
को दे के धोखा हँसते ही जाते हैं लोग
और हैं
नहीं देखो सुरक्षित अब किसी की थालियाँ
छेद
करते हैं उसी में जिसमें खुद खाते हैं लोग
हो गई
दुनिया ये कैसी और हैं कैसे ये लोग
मैं
भला कैसे ये समझूं किसके हैं जैसे ये लोग
और
जिनके हाथों से चमन हर बार उजड़ा है यहाँ
बनके
बैठे हैं वो माली सच में हैं ऐसे ये लोग