बचपन में मेरे दादा जी एक पौराणिक कथा मुझे सुनाया
करते थे....................
सौ अश्वमेध यज्ञ करने पर इन्द्र का पद प्राप्त
होता था, एक राजा ने सौ अश्वमेध करने का निश्चय किया.
(इस यज्ञ में एक घोडा छोड़ दिया जाता है जिस - जिस राज्य में वह घोडा जाता है वह राज्य
यज्ञ करने वाले राजा की दासता स्वीकार कर लेता है यदि कोई नहीं मानता तो उसे युद्ध
में हरा कर आयोजक राजा अपने आधीन कर लेता है)
तो साहब उस राजा ने कुल निन्यानबे यज्ञ पूर्ण कर लिए| सोवें यज्ञ के लिए जब घोडा छोड़ा गया तो घोडा गायब हो गया, राजा ने जाँच कराई तो पता चला कि अपना पद छिन जाने के डर से
तत्कालीन इन्द्र ने वह घोडा चुरा लिया है ताकि सौ अश्वमेध यज्ञ पूर्ण न हो सकें | यह जानकर आयोजक राजा ने कहा कि अनेकों युद्ध लड़कर, इतने परिश्रम के बाद इन्द्र का पद प्राप्त हो और फिर भी चोरी
की आदत न जाये तो ऐसे पद की मुझे कोई इच्छा नहीं...............